विभिन्न जनसंगठनों की मांग पर इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज होने जा रहा है,यह समाचार देखने-पढ़ने को मिला। निश्चित रूप से यह कदम जनभावनाओं की कद्रदानी है।

अनूप जलोटा को लेकर तरह-तरह की टिप्पणियां सोशल-मीडिया पर आ रही हैं। कुछ तो उनके पक्ष में हैं और कुछ उनके विपक्ष में। सौ बात की एक बात है कि व्यक्ति जिस तरह से जीना चाहें, जिये। यह उसका अपना निर्णय है। मगर इस ‘जीने’ की नुमाइश क्यों?

14 सितम्बर को कश्मीरी-पंडित-समुदाय ने विश्व भर में बलिदान-दिवस मनाया। जगह-जगह पंडितों की कई सारी प्रमुख सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं ने जनसभाएं आयोजित कीं। जुलूस और कैंडल-मार्च निकाले।

हिंदी-दिवस अथवा हिंदी-सप्ताह या फिर हिंदी पखवाड़ा आदि मनाने के दिन निकट आ रहे हैं। सरकारी कार्यालयों में, शिक्षण-संस्थाओं में, हिंदी-सेवी संस्थाओं आदि में हिंदी को लेकर भावपूर्ण भाषण व व्याख्यान,निबन्ध-प्रतियोगिताएं,कवि-गोष्ठियां पुरस्कार-वितरण आदि समारोह धडल्ले से होंगे।

The universally accepted World Teacher's Day is 5th October, but In India, the Teacher's Day is celebrated on 5th September every year and this tradition started in 1962. This is the date when the great philosopher, thinker, scholar and former President of India Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was born.

11वां विश्व हिंदी सम्मेलन मॉरीशस में संपन्न हुआ। अपने यहां तो हम हिंदी को पूर्ण रूप से एक सम्मानजनक स्थान नहीं दिला सके, सम्भव है विदेश में इस भाषा की पैरवी कर कुछ संतोषजनक नतीजे निकलें होंगे।

इतिहास गवाह है कि दुनिया में हमेशा शक्तिशाली देश अथवा योद्धा ने राज किया है। माला जपने, मंत्रोच्चार और शांति-उपदेशों से लड़ाइयां नहीं जीती जा सकती। समय आ गया है जब शठ को शठता से ही निपटना होगा। सांप काटे नहीं मगर फूत्कारे तो सही।

कश्मीर की आदि संत कवयित्री ललद्यद (चौदहवीं शताब्दी) कश्मीरी भाषा-साहित्य की विधात्री मानी जाती हैं। ललेश्वरी, लल, लला, ललारिफा, ललदेवी आदि नामों से विख्यात इस कवयित्री को कश्मीरी साहित्य में वही स्थान प्राप्त है जो हिंदी में कबीर को है। इनकी कविता का छंद ‘वाख’ कहलाता है जिसमें उन्होंने अनुभवसिद्ध ज्ञान के आलोक में आत्मशुद्धता, सदाचार और मानव-बंधुत्व का ऐसा पाठ पढ़ाया जिससे कश्मीरी जनमानस आज तक देदीप्यमान है। 

Research reveals that the use of internet by social media lovers, especially from among the younger generation, has gone up over the years and thus giving rise to some kind of disadvantages. Therefore, naturally, educators and parents are worried and need to find a way to not dismiss it completely, but at least propose some measures to shield the younger generation from this growing menace.

एक बार फिर दिल्ली के निर्भया कांड की याद ताजा हो गयी। इस बार यह घृणित कृत्य मन्दसौर में एक मनुष्य-रूपी हैवान ने अंजाम दिया।