मुंशीजी का सिकन्दर
रात के ग्यारह बजे और ऊपर से जाड़ों के दिन। मैं बड़े मजे में रजाई ओढ़े निद्रा-देवी की शरण में चला गया था। अचानक मुझे लगा कि कोई मेरी रज़ाई खींचकर मुझे जगाने की चेष्टा कर रहा है। अब आप तो जानते ही हैं कि एक तो मीठी नींद और वह भी तीन किलो वज़नी रजाई की गरमाहट में सिकी नींद, कितनी प्यारी, कितनी दिलकश और मज़ेदार होती है।